आसुरी शक्तियों के नास को देवी ने कुष्मांडा का रूप आसुरी शक्तियों का नाश किया ।
हल्दूचौड़ ।
श्रीमद् देवी भागवत के चौथे दिन की कथा का वर्णन करते हुए वरिष्ठ महामंडेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति महाराज ने कहा कि आसुरी शक्तियों के नास को मां देवी ने कुष्मांडा देवी का रूप धारण कर रक्तबीज का वध आसुरी शक्तियों का नाश करके देवताओं की रक्षा की। कुष्मांडा देवी दुर्गा के नौ रूपों में से चौथा रूप है। वह भगवान शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप है। कुष्मांडा देवी को कुम्हड़ा या कुष्मांडा भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “कुम्हड़े की देवी”।
यहां यह बात बेरी पडाव स्थित आष्टा दश भुजा महालक्ष्मी मंदिर के व्यवस्थापक वरिष्ठ महामडलेश्वर स्वामी सोमेश्वर यति महाराज ने कथा प्रवचन करते हुए उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा कि आज इस कलयुग में कुष्मांडा देवी ने महिषासुर के एक शक्तिशाली सैनिक, रक्तबीज का वध किया। रक्तबीज की विशेषता थी कि उसके शरीर से निकलने वाले हर बूंद रक्त से एक नया रक्तबीज पैदा होता था। कुष्मांडा देवी ने रक्तबीज का वध करके देवताओं की रक्षा की। कुष्मांडा देवी की पूजा नवरात्रि के चौथे दिन की जाती है। इस दिन भक्त कुष्मांडा देवी की पूजा करके उनकी कृपा और शक्ति प्राप्त करने की कामना करते हैं। चौथे दिन की कथा में देवी की विभिन्न शक्तियों और उनके अवतारों का भी वर्णन किया जिसमें सती, पार्वती, दुर्गा, काली आदि की कथाओं देवी ने विभिन्न रूपों में प्रकट होकर असुरों का वध किया और धर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा कि यह कथा श्रद्धालुओं को देवी की शक्ति और महिमा के बारे में जानने और उनकी भक्ति करने के लिए प्रेरित करती है।