हाई कोर्ट में खनन नियमावली संशोधन की वैधता को चुनौती …….जाने क्या है पूरा मामला …….

हाई कोर्ट में खनन नियमावली संशोधन की वैधता को चुनौती …….जाने क्या है पूरा मामला …….

करन पाण्डे 👉

नैनीताल ।

उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियमावली में इस वर्ष आठ अक्टूबर को अधिसूचना जारी करके जोड़े गए उपनियम की वैधता को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया है कि जिन मामलों में नियम 31(9) के तहत खनन की अनुमति दी गई है। वहां नदी तल सामग्री (आरबीएम) को हटाने के लिए मशीनों या उत्खनन मशीनों का उपयोग नहीं किया जाएगा। याचिकाकर्ता ने उपनियम को लागू करने को यह कहते हुए चुनौती देते हुए आरोप लगाया है कि राज्य सरकार ने लेटर आफ इंटेंट धारकों को पिछले दरवाजे से प्रवेश प्रदान किया है। जो ड्रेजिंग नीति की आड़ में खनन कार्य करने के लिए संबंधित एजेंसियों से आवश्यक अनुमति प्राप्त करने में असमर्थ हैं। कोर्ट ने सरकार सहित अन्य पक्षकारों को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई को आठ जनवरी को तय की है।

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति विवेक भारती शर्मा की खंडपीठ ने सत्येंद्र सिंह चौहान की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा है कि नियम 31 के नए जोड़े गए उपनियम (9) के तहत उन व्यक्तियों को ड्रेजिंग नीति लागू कर खनन कार्य करने की अनुमति दी गई है, जिन्हें खनन नीति के तहत खनन पट्टा देने के लिए आशय पत्र जारी किया गया है, लेकिन जो संबंधित एजेंसियों से आवश्यक मंजूरी के अभाव में खनन कार्य करने में असमर्थ हैं। यह अनुमति तभी तक रहेगी, जब तक संबंधित एजेंसियों से आवश्यक मंजूरी नहीं मिल जाती। चौहान के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उपनियम (9) का प्रयोग कर राज्य के भीतर सभी नदियों में खनन की अनुमति दी गई है, भले ही केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय और अन्य संबंधित एजेंसियों द्वारा आवश्यक अनुमति ना मिली हो। उन्होंने दावा किया कि इस तरह का खनन पोकलैंड मशीन और उत्खनन मशीनों सहित भारी मशीनरी का उपयोग करके किया जाता है, जो खनन नीति और उत्तराखंड लघु खनिज (रियायत) नियम, 2023 के प्रावधानों के तहत भी अनुमन्य नहीं है।

इस मामले में सरकारी अधिवक्ता ने उपनियम (9) का बचाव करते हुए तर्क दिया कि उक्त प्रावधान के अनुसार, केवल ऐसे व्यक्ति को खनन कार्य करने की अनुमति है। जिसे आशय पत्र जारी किया गया है। जो रायल्टी के रूप में देय राशि का दोगुना भुगतान करने के लिए तैयार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि नदियों को चैनलाइज करने के लिए ड्रेजिंग की जाती है। ताकि नदी अपना मार्ग न बदलें तथा भारी वर्षा के दौरान अपने किनारों को न तोड़ें, अन्यथा इससे आस-पास के कस्बों-गांवों में रहने वाले लोगों की जान-माल की हानि हो सकती है। राज्य अधिवक्ता ने यह भी कहा कि संशोधित प्रावधान यह सुनिश्चित करने के लिए है कि जिस व्यक्ति को आशय पत्र दिया गया है, उसे संबंधित एजेंसियों द्वारा खनन के लिए मंजूरी देने में देरी के कारण नुकसान न उठाना पड़े। यदि ड्रेजिंग नीति के तहत किसी अन्य व्यक्ति को आरबीएम निकालने की अनुमति दी जाती है, तो यह उस व्यक्ति के साथ अन्याय होगा, जिसे उसी नदी से खनन के लिए पहले से ही आशय पत्र दिया गया है।

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