राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर चौम्वाल तमाम अनियमितताओं घेरे में

राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर चौम्वाल तमाम अनियमितताओं घेरे में

राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर चौम्वाल तमाम अनियमितताओं घेरे में
करन पाण्डे
हल्दूचौड़।
उत्तराखंड के शिक्षा विभाग की गड़बड़ियों ने एक राजकीय हाईस्कूल के अस्तित्व और छात्रों के भविष्य को गंभीर संकट में डाल दिया है। शिक्षा विभाग की मिलीभगत से वर्ष 2019 में राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर चौम्वाल के विलय के आदेश को ठेंगा दिखाकर विद्यालय फर्जी तरीके से संचालित किया जा रहा है।
गौरतलब तो यह है कि यह विद्यालय न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को पटखनी देने वाले डॉक्टर मोहन बिष्ट की विधानसभा से आता है बल्कि यह खुद विधायक डॉक्टर मोहन बिष्ट के अपने गांव जग्गी से 600 मीटर दूरी पर स्थित स्कूल का मामला है, जिसकी सुध लेने की विधायक ने बीते दो-तीन सालों में कोई जहमत नहीं उठाई। इस मामले का खुलासा करते हुए उत्तराखंड युवा एकता मंच के संयोजक एवं आर टी आई कार्यकर्ता पीयूष जोशी द्वारा संकलित की गई सूचनाओं से पता चला की वर्ष 1996 में स्थापित राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय कक्षा 6-8 जिसमें शिक्षा विद्यालय की स्थापना के बाद से ही शिक्षा को एजुकेशन मोड में दी जा रही थी,उक्त विद्यालय को वर्ष 2014 में उच्चीकृत किया गया था और प्राथमिक विद्यालय के भवन में ही राजकीय कन्या उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर चौम्वाल की स्थापना की गई। जिसमे नौवीं और दसवीं की कक्षाएं केवल बालिकाओं के लिए संचालित कर्ने की अनुमति मिली, जबकि जूनियर हाईस्कूल पहले से ही सह-शिक्षा के तहत संचालित होता आ रहा था,यह दोनो संस्थाएं एक हि भवन मे संचालित हो रही थी । दोनों विद्यालयों के बीच विवाद तब शुरू हुआ जब वर्ष 2018 में सरकार द्वारा आदेश जारी किया कि छात्र संख्या 30 से कम वाले नवसृजित उच्च माध्यमिक विद्यालयों का निकट वर्ती विद्यालयों में विलय किया जाए। राकउमावि हिम्मतपुर चौम्वाल में भी छात्र संख्या केवल 25 थी, इस कारण इसे राजकीय बालिका इंटर कॉलेज दौलिया में विलय करने का आदेश जारी हुआ। शिक्षा विभाग ने यह भी स्पष्ट किया कि दोनों स्कूलों के बीच कोई प्राकृतिक बाधा नहीं है, जो विलय में रुकावट पैदा कर सके। वही जिला शिक्षा अधिकारी के मार्च 2019 के आदेश के बावजूद, विद्यालय का विलय नहीं किया गया है। वही अप्रैल 2019 से विद्यालय को सह-शिक्षा मोड में अवैध रूप से संचालित किया जा रहा है। इसमें कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों का भी प्रवेश शुरू कर दिया गया था, जो स्पष्ट रूप से अनुचित था। वही अभी भी विभागीय अधिकारियों की मिलीभगत से यह अवैध संचालन किया जा रहा है जिससे छात्रों के भविष्य पर संकट पैदा हो रहा है । वही जुलाई 2019 को राकउप्रावि हिम्मतपुर चौम्वाल का यू-डायस कोड अवैध रूप से राकउमावि हिम्मतपुर चौम्वाल द्वारा उपयोग किया गया। इस पर शिक्षा विभाग ने राकउप्रावि के यू-डायस कोड अधिग्रहित कर लिया और राकउमावि को नए यू-डायस कोड प्राप्त करने के लिए समग्र शिक्षा अभियान से आवेदन करने के निर्देश दिए। परन्तु विवाद का विषय यह था की जुलाई 2019 में, उप शिक्षा अधिकारी ने राकउप्रावि हिम्मतपुर चौम्वाल को पृथक से संचालित करने के आदेश को निरस्त कर दिया और प्रधानाध्यापक को उच्च माध्यमिक विद्यालय का चार्ज देने के निर्देश जारी किए, जबकि शिक्षा विभाग खुद पहले के पत्रों में यह मान चुका था कि राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय गलत ढंग से संचालित हो रहा है और इसका विलय पहले ही हो चुका है। इस आदेश पर राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों ने यह कहते हुए इनकार कर दिया की विलीन हो चुके विद्यालय को चार्ज किस प्रकार सौंपा जाए यह स्पष्ट नहीं है,क्योंकि कागजी तौर पर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर का अस्तित्व ही नहीं था और विद्यालय का पहले से ही विलय किया जा चुका था।
वही 14 अगस्त 2023 तक, राकउप्रावि हिम्मतपुर चौम्वाल में छात्र संख्या शून्य हो गई। चारों शिक्षकों का अन्यत्र विद्यालयों में तबादला किया गया, लेकिन वेतन उनके मूल विद्यालयों से ही मिलता रहा।
वही छात्र संख्या बड़ाने के लिए राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर में प्राथमिक विद्यालय के 6 से 8 तक के बच्चे दर्शाये गये जो उनके विद्यालय के नही है, और उनके पास कक्षा 6 से 8 तक कक्षाएं संचालित करने की विभागीय अनुमति भी नहीं है।
इसके साथ-साथ शिक्षा विभाग का कोई ऐसा अंतरिम आदेश भी नहीं है जिसमें राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय हिम्मतपुर को 6 से 8 तक कक्षाएं संचालित करने व को एजुकेशन में शिक्षा चालू करने का आदेश हुआ हो। वही अक्टूबर 2023 में, मुख्य शिक्षा अधिकारी ने इस मामले पर पांच बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा जिससे यह स्पष्ट हो गया कि राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अभी तक अवैध रूप से संचालित हो रहा था। विभागीय अधिकारियों का यह भी कहना है कि उक्त मामले में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अभी तक कोई स्पष्टीकरण विभाग को पेश नहीं कर पाया है । वही मुख्य शिक्षा अधिकारी द्वारा मामले पर पांच बिंदुओं पर स्पष्टीकरण मांगा गया जिसमें निम्न वार बिंदु इस प्रकार से है ।
1. अनाधिकृत रूप से संचालित स्कूल में एमडीएम की व्यवस्था का आधार।
2. बिना किसी शासनादेश के भोजन माता की नियुक्ति।
3. राकउप्रावि हिम्मतपुर चौम्वाल के यू-डायस कोड का अवैध उपयोग।
4. बालिका विद्यालय में सह-शिक्षा मोड की शुरुआत।
5. विद्यालय मे किस आदेश् के तहत 6 से आठ तक छात्रों का प्रवेश लिया गया।

वही वर्ष 2019 में, गीता पांडे जो तथाकथित तौर पर राजकीय उच्च माध्यमिक कन्या विद्यालय प्रबंध समिति की अध्यक्ष थी। उन्होने न्यायालय में जनहित याचिका दायर की, जिसमें न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया गया कि हिम्मतपुर चौम्वाल में विद्यालय के विलय पर पुनः समीक्षा करें व छात्रों के भविष्य को देखते हुए निर्णय लेने के लिए याचिकाकर्ता अर्थात गीता पांडे शिक्षा विभाग को एक प्रत्यावेदन देगी जिस पर 3 सप्ताह के भीतर विभाग को निस्तारित करना होगा । वही उक्त मामले में ना ही गीता पांडे द्वारा कोई प्रत्यावेदन विभाग को सौंपा ना ही मामले का निस्तारण हुआ।
उसके बाद हरिश्चंद्र शर्मा जो राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय के सहायक अध्यापक थे उन्होंने भी एक याचिका वर्ष 2019 में हाईकोर्ट में दायर की जिसमें हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से गीता पाण्डे की याचिका में दिए गए निर्णय पर जब स्पष्टीकरण मांगा तो उनका स्पष्ट कहना था कि याचिकाकर्ता द्वारा कोई प्रत्यावेदन नहीं दिया है जिस कारण निस्तारण संभव नहीं था । परंतु अंतिम सुनवाई के दिन हरिश्चंद्र शर्मा व उनके अधिवक्ता न्यायालय में उपस्थित नहीं थे तो शासन की ओर से वकील द्वारा आग्रह किया गया कि मामले को खारिज किया जाए उस आग्रह के आधार पर मामले को खारिज कर दिया गया।

बॉक्स:
दो संस्थाओं के आपसी विवाद के बीच छात्रों के भविष्य खतरें में है। एक विद्यालय का कागजों में अस्तित्व ही नहीं जबकि दूसरे का धरातल में अस्तित्व विभाग की आपसी तनातनी के बीच खत्म हो गया है। ऐसे में नौनिहालों का भविष्य अधर में है। अधिकारी बेवजह यह गुमराह कर रहे हैं कि मामला न्यायालय में है जबकि मामले से संबंधित सभी याचिकाएं निस्तारित हो चुकी हैं फिर भी शिक्षा विभाग के अधिकारी छात्र-छात्राओं व उनके अभिभावकों को गुमराह कर रहे हैं।यहां तक की शिक्षा विभाग के अधिकारी न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का भी पालन नहीं कर रहे व उनकी नाक के नीचे ऐसा गंभीर फर्जीवाड़ा चल रहा है यह शिक्षा विभाग में अनियमितता को दर्शाता है उक्त मामले में एक बार जिला शिक्षा अधिकारी व कुमाऊं कमिश्नर से भी मुलाकात करेंगे वह जांच की मांग करेंगे अगर जरूरत पड़ी तो मामले में न्यायालय की शरण लेंगे।
– पियूष जोशी, संयोजक, उत्तराखंड युवा एकता मंच

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